About-us

 

जानिए भारतीय ग्राहक आंदोलन प्रथम कहा से शुरू हो गया! 


 जानिए अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत की स्थापना तथा जरूर की कहानी!

और जानिए ग्राहक आयोग संक्षिप्त में! 


70 के दशक में सरकारें देश में कई आवश्यक वस्तुओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। जिसके कारण उपभोक्ताओं/ग्राहको को बड़े पैमाने पर आवश्यक वस्तुओं को खरीदने से रोका गया था। यहां तक कि सार्वजनिक त्योहारों के दौरान भी काला बाजार में सामान की बिक्री होती थी। पुणे तथा पुरे देश में यह सब हो रहा था। उपभोक्ताओं का बड़े पैमाने पर आर्थिक शोषण किया जा रहा था ।

और खास तौर पर चूंकि इस स्थिति पर किसी का नियंत्रण नहीं था और ग्राहकों के लिए कोई अभिभावक नहीं था, इसलिए सोचा गया कि अब इस बारे में आवाज उठानी होगी.  अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत के संस्थापक कै.बिंदुमाधव जोशी, पुणे के अपने सहयोगियों के साथ कै. जी.वा. बेहरे, श्री.जी. माजगांवकर,  श्री सुधीर फड़के,  श्री भा. र. साबाड़े, श्री.  बी. मो. पुरंदरे आदि ने कई प्रसिद्ध पुणेकरों को एकत्रित किया और सामुदायिक किराना दुकान भुसर खरीदकर न लाभ न हानि (नो लॉस नो प्रॉफिट)के सिद्धांत पर माल का वितरण शुरू किया। विशेष बात यह है कि मीठा तेल टैंकरों से लाकर पुणे में वितरित किया जाता था।  इस पहल से लगभग तीन सौ से साढ़े तीन सौ उपभोक्ता संघ बने, हर पच्चीस परिवारों का एक उपभोक्ता संघ बनाया था। आगे इन उपभोक्ता संघों की एकता के बल पर पुणे में कई परिवार सड़कों पर उतरे और शोषणके खिलाफ आवाज उठाई। 

इन आर्थिक शोषणको, जिसे "ऑपरेशन लक्ष्मी रोड", "चावल बाज़ार", "ऑपरेशन मेडिसिन" कहा गया। आम जनता से बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली, लोग इकट्ठा हो गए। 

 

और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस वितरण के माध्यम से, कई पुणेवासी एक साथ आए और उन सभी के सहयोग से, पुणे में उपभोक्ताओं के लिए एक बहुत ही प्रभावी ग्राहक आंदोलन उभरा।

 

इस ग्राहक आंदोलन में डॉ. अशोक काळे, श्री सुहास काणे, श्री भालचंद्र वाघ, श्री भा र साबडे, श्री सूर्यकांत पाठक और श्री ठकसेन पोरे आदि लगातार सुश्री बिंदुमाधव जोशी यानी नाना के सानिध्य में रहे।


बाद में 20 फरवरी 1975 को पुणे के बालगंधर्व रंगमंदिर में पुणे विश्वविद्यालय के कुलपति श्री देवदत्त दाभोलकर की अध्यक्षता में तथा न्यायमूर्ति मोहम्मद करीम छागला द्वारा इस आंदोलन को अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत का नाम दिया गया। तथा जो ग्राहक संघ स्थापित किए थे उनकी एक को ऑपरेटिव्ह शॉप चालू कि जिसका नाम ग्राहक पेठ रखा गया. 

दोनो संस्था २०२० सदाशिव पेठ, टिळक रोड, पुणे यांनी वर्तमान ग्राहक पेठ जहा है वहा शुरु की गई. ऐसी दो महत्वपूर्ण ग्राहक संगठनों का उदय हुआ।

इसके अलावा, इन सभी आंदोलनों को एक संगठनात्मक और कानूनी रूप देने के लिए, इस आंदोलन को आधिकारिक तौर पर 1974 में दिल्ली में अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत के रूप में पंजीकृत किया गया। (पंजीकरण संख्या S9194 दिल्ली।)

उपभोक्ता/ग्राहक कभी संगठित नहीं होते हैं और नही अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों को जानने की कोशिश करते हैं, वे तभी जागते हैं जब उन्हें धोखा दिया जाता है, इसलिए हर कदम पर उनका आर्थिक शोषण किया जा रहा है।  

अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत ने शोषण मुक्त अर्थव्यवस्था और शोषण मुक्त समाज बनाने के महान लक्ष्य को स्वीकार किया ताकि उपभोक्ताओं का शोषण न हो। इसीलिए पुणे और देश के कई प्रसिद्ध, नामचीन लोगों ने ग्राहक पंचायत के कार्य में भाग लिया है और पुणे में ग्राहक पंचायत के पौधे बढ़ते देख आज वह वटवृक्ष में तब्दील हो गया है और यह भारतीय ग्राहक  आंदोलन व संगठन देशव्यापी बन गया है।

अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत देशव्यापी हो गई और सभी प्रांतों में इसका काम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के माध्यम से, संघ की मदद सेही शुरू हुआ।

ग्राहक  पंचायत किसी व्यक्ति या व्यवसाय के खिलाफ नहीं है, लेकिन अनुचित व्यापारिक लेन-देन के खिलाफ जरूर है। साथ ही ग्राहक पंचायत किसी भी राजनीतिक दल से नहीं जुड़ा है, इसलिए आज यह संगठन देश के हर प्रांत में सीधे तौर पर काम कर रहा है और इसके हजारों कार्यकर्ता हैं। संगठन लगातार देश स्तर पर उपभोक्ता/ग्राहक जागरूकता का काम कर रहा है। देश भर में उपभोक्ताओं के साथ हो रहे अन्याय और आर्थिक शोषण के खिलाफ आवाज उठाई जा रही है। नागरिक कानूनों का पालन करके ग्राहक जागरूकता इस संगठन का मुख्य उद्देश्य है और महाराष्ट्र इसमें सबसे आगे है।

देश स्तर पर ग्राहक जागरूकता का काम शुरू हुआ, लेकिन ग्राहक जागरूकता का काम इतना ही काफी नहीं था, बल्कि उपभोक्ताओं/ग्राहकों के आर्थिक शोषण को रोकने और उनके अधिकारों और उनकी सुरक्षा के लिए कानून का आधार बनाना जरूरी था। 

ग्राहक पंचायत के संस्थापक स्वर्गीय श्री बिंदुमाधव जोशी और उनके सहयोगियों ने हमारे देश में उपभोक्ता संरक्षण कानून क्यों होना चाहिए, इसके लिए पुरजोर प्रयास शुरू किये और वे प्रयास सफल भी हुए।

अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत स्थापना का 

इतिहास ऐसा है अब जानते है ग्राहक कानून का जन्म  

श्री बिंदुमाधव जोशी और नागपुर के उनके बेहद करीबी सहयोगी श्री गोविंददासजी मुंदड़ा  ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (यानि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम) का एक अच्छा मसौदा तैयार किया और वह मसौदा केंद्र सरकार को सौंपा और सरकार को उपभोक्ता की आवश्यकता और महत्व के बारे में आश्वस्त किया। एक प्राइवेट बिल पेश करने के लिए तैयारी की गई। मगर तत्कालीन पंतप्रधान श्री राजीव गांधी जीने सरकार की तरफ से यही बिल के मुद्दो को लेकर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम विधेयक को मंजूरी के लिए संसद में पेश किया गया। इसे लोकसभा तथा राज्य सभाने सर्वसम्मति से सदन द्वारा अनुमोदित किया गया। और विधेयक पर 24 दिसंबर 1986 को पूर्व राष्ट्रपति श्री ज्ञानी जैल सिंह ने हस्ताक्षर किए  और इस प्रकार 24 दिसंबर 1986 को भारत में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम लागू हुआ।

कानून बनने से त्रि स्तरीय कानून व्यवस्था शुरु हो गई। 

जिला स्तर, राज्य स्तर तथा राष्ट्रीय स्तर। 

जिला स्तर के ग्राहक न्यायालय को जिला ग्राहक/उपभोगता मंच कहा गया और प्रथम उसकी मर्यादा 1 लाख की थी, फिर राज्य ग्राहक संरक्षण आयोग जिसकी मर्यादा 1 से 10 लाख थी, और राष्ट्रीय ग्राहक संरक्षण आयोग जिसकी मर्यादा 10 लाख के ऊपर थी। 

पूरे देश में सभी जिलों में, सभी राज्यों में तथा राष्ट्रीय स्तर के ग्राहक संरक्षण आयोग की स्थापना के लिए अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत ने अथक प्रयत्न करके चालू करने में सफलता प्राप्त की। 

 ग्राहक संरक्षण कानून १९८६ में राज्य आयोग तथा जिला मंच हर एक राज्य सरकार के अधिकार में आते थे और हर एक राज्य सरकार ने वही कानून अपनाना भी जरूरी था। तथा सभी के कानून के हिसाब से नियमन प्रसिद्ध करना, आयोग को जगह देना, स्टाफ देना और अध्यक्ष के लिए न्यायाधीश और 2 सदस्य की नियुक्ति करना जरूरी था। 

अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत के देश भरके कार्यकर्ता की मदत से

आज देश के हर जिले में उपभोक्ता न्याय मंच काम कर रहे हैं। तथा हर राज्य में राज्य आयोग की स्थापना की गई है।

जन्म लेने वाला प्रत्येक व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्यु के बाद भी ग्राहक/उपभोक्ता होता है। क्योंकि जन्म हॉस्पिटल में लेता है वहा हम पैसे देकर सेवा लेते है, शिक्षा लेते है वहा भी सेवा लेते है, शादी ब्याह के वक्त खरीद दारी करते है, सेवा लेते है वहा आप ग्राहक है, मरने के बाद लकड़ी, बिजली लगती है वहा भी हम सभी लोग ग्राहक है।

इस कानून के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति जो मूल्य चुकाकर सामान या सेवाएँ खरीदता है वह उपभोक्ता है। इस कानून की मूल अवधारणा यह है कि उपभोक्ताओं को 90 दिनों के भीतर न्याय मिलना चाहिए और यह कानून उपभोक्ताओं को छह बुनियादी अधिकार देता है। इस न्यायाधिकरण की प्रक्रिया और संरचना इतनी सरल और आसान है कि कोई भी अपनी शिकायत आसानी से खुद और बिना किसी लागत के दर्ज कर सकता है।

जिला न्याय मंच, राज्य आयोग तथा राष्ट्रीय आयोग में एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश व्यक्ति और ग्राहक संरक्षण क्षेत्र में काम करने वाला संस्था का  पंजीकृत उपभोक्ता संघ से दो सदस्य (पुरुष तथा महिला) होते हैं।

1986 में अस्तित्व में आए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में 9 अगस्त 2019 को बड़े बदलाव केंद्र सरकार ने किए और 20 जुलाई 2020 को इसके नियमों की घोषणा की गई और अब उसी के अनुसार काम चल रहा है। अब जिला उपभोक्ता न्याय मंच के बजाय जिला उपभोक्ता आयोग का नाम दिया गया है। तथा त्रिस्तरीय आयोग की आर्थिक मर्यादा बढ़ाई गई है।

अब जिला आयोग में आप 50 लाख तक के वस्तु तथा सेवा खरीद की तो जा सकते है, 50 लाख से 2 करोड़ तक राज्य आयोग में जा सकते है तथा 2 करोड़ के ऊपर जाने से आप राष्ट्रीय आयोग में जा सकते है।

 2019 के इस ग्राहक संरक्षण कानून में बहुत शक्तिशाली तरतूद की है इसमें 130 धाराएं हैं। एक प्रभावी कानून बना है।

ग्राहक जिला, राज्य और राष्ट्रीय आयोग में न्याय की मांग कर सकते हैं। उपभोक्ताओं को धोखा दिए जाने के दो साल के भीतर ग्राहक आयोग में मामला दायर करना जरूरी होता है और वे निचली त्सर के आयोग के फैसले के खिलाफ ऊपरी स्तर के आयोग में अपील भी कर सकते हैं।यानी जिला आयोग के फैसले के खिलाफ राज्य आयोग, राज्य आयोग के फैसले के खिलाफ राष्ट्रीय आयोग में अपील कर सकते है।

 ग्राहक के अलावा अगर दूसरी पार्टी को अपील करना है तो जो निचले आयोग ने फैसला दिया है उसका आधा जुर्माना भरने के बाद ही अपील अर्जी स्वीकृत की जाती है।

उपभोक्ता/ग्राहक आयोग को दोषी के ऊपर आर्थिक जुर्माना लगाने की भी शक्ति दी है और दोषी ने आदेश का पालन नहीं किया तो उसे कारावास में भेजने की भी तरतूद की है।

उपभोक्ता/ग्राहक आयोग में उपभोक्ताओं को सबसे तेज न्याय मिलता है।  हमारे देश में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम और उपभोक्ता आयोग के लागू होने के 38 वर्षों के बाद भी उपभोक्ताओं का आर्थिक शोषण जारी ही है, क्योंकि उपभोक्ता खुद संगठित और जागरूक नहीं हैं, इसलिए भ्रामक विज्ञापन, मोबाइल सेवाएँ, ऑनलाइन शॉपिंग, मेडिक्लेम पॉलिसियाँ, अस्पताल, दवाएँ, फर्जी एम. आर.पी, बिल्डर लॉबी, क्रेडिट कार्ड, बैंक आदि विभिन्न सेवा तथा वस्तु लेते वक्त ग्राहकों का वित्तीय शोषण आज भी जारी है। जैसे-जैसे समय बदला है, वित्तीय शोषण के आयाम बदल गए हैं, शोषण के तरीके बदल गए हैं, लेकिन ग्राहकों की मानसिकता अभी भी नहीं बदली है। ग्राहक सजग होने चाहिए तभी ग्राहक राजा हो जायेगा।


विलास लेले
अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत.
634, सदाशिव पेठ, पुणे 411030.